Sunday, May 25, 2008

कुछ मन के ख्याल...

कितनी लगन से उसने जी होगी जिंदगी
यूँ ही नहीं हँसते हुये यहाँ दम निकलता है


इबादतें, वो बड़ी बेमिसाल होतीं हैं
इंसान जब भगवान से आगे निकलता है


जिंदगी में हार को तुम मात न समझो
इंसान ही तो यारों गिरकर संभलता है


पहली नज़र के प्यार से हमको परहेज है
कभी-कभी ही साथ यह लंबा निकलता है


खुशी की देखो गम से हो गई दोस्ती
गम में भी नहीं आँसू यहाँ अब निकलता है

Monday, May 5, 2008

धर्म भी आहत है...

कर्तव्य से बड़कर जहाँ पद है
यह मान नहीं मान का मद है


जहाँ खुलती नहीं वक्त से गाँठें
घर नहीं वो तो बस छत है

इंसा से बड़कर जहाँ जिद है
यह ज्ञान नहीं ज्ञान का मद है

कौन फ़िर लगाये वहाँ मरहम
दृड़ जो सबके यहाँ मत हैं

दिल दुखाये जो अगर वाणी
मान लो झूठ जो अगर सच है

कद पर उसके तुम मत जाना
फ़ल नहीं छाया भी रुकसत है

कैसे रहें वहाँ पर खुशियाँ
दर्द एक हाथ का दूजा जहाँ खुद है

उस ज्ञान की क्या भला कीमत
जिसमे न्याय नहीं धर्म भी आहत है