Thursday, September 25, 2008

कौन हूँ मैं...

प्रश्न कुछ ऎसे हैं जिनसे
रोज होता रूबरू मैं
कौन हूँ क्या चाहता हूँ
जानने की पीर हूँ
मैं

इंतहानों को दिये अब
साल बीते हैं बहुत
अब भी मगर ये स्वप्न में
आकर डराते हैं बहुत
ज्ञान जो निर्भय बनाये
पाने को गंभीर हूँ मैं
कौन हूँ...


राह जैसे सूर्य की
देती है सबको उष्मा
चन्द्र जैसे दे रहा है
छोड़कर सब उष्णता
राह ऎसी जानने को
हो रहा अधीर हूँ मैं
कौन हूँ...

भगवान तूने है बनाया
आसमाँ सबके लिये
इंसान फ़िर क्यूँ चाहता है
बस इसे अपने लिये
इंसानियत जीते हमेशा
ऎसी एक उम्मीद हूँ मैं
कौन हूँ...

शुष्क ना हो ज्ञान
हमको भावना भी चाहिये
इंसान को सम्मान और
कुछ बोल मीठे चाहिये
मन प्रभू ऎसा बनाओ
सब कहें मंजूर हूँ मैं
कौन हूँ...

Tuesday, September 23, 2008

भरे पेट का ज्ञानयोग...

भरा पेट खाली पेट पर आसन जमाये
पास रखी रोटी को पाने की
असफ़ल कोशिश कर रहे
खाली पेट से कहता है
रोटी तक पहुँचने का
आसान रास्ता न चुनो मित्र
भूख पर विजय ही
हमारे स्वर्णिम भविष्य...
भविष्य शब्द पर अचानक भरा पेट रुका
फ़ुर्ति से रोटी उठाई और बोला
हाँ तो मैं क्या कह रहा था