Saturday, April 12, 2008

३ क्षणिकायें...

जीवन कठिन डगर है
जो साँसें नहीं हैं गहरी
कैसे प्रभु मिलेगें
मन जो रहेगा लहरी
~~~~~~~~~~
मैनें धर्म को अधर्म के साथ
चुपचाप खड़े देखा है
मैं अधर्म की अट्टाहस से नहीं
धर्म की खामोशी से हैरान हूँ
~~~~~~~~~~
जहाँ छोड़ रख्खा हो अंधेरा
सबने भरोसे सूर्य के
वहाँ जलता हुआ एक दीप भी
किसी सूरज से कम नहीं

Sunday, April 6, 2008

लोग...

तेरी इस दुनियाँ में प्रभु जी
रंग-बिरंगे मौसम इतने
क्यों फ़िर सूखे-फ़ीके लोग
थोड़ा खुद हँसने की खातिर
कितना रोज रुलाते लोग
बोतल पर बोतल खुलती यहाँ
रहते फ़िर भी प्यासे लोग
पर ऎसे ही घोर तिमिर में
मेधा जैसे भी हैं लोग
सत्य, न्याय और धर्म की खातिर
लड़ते राह दिखाते लोग
एक राम थे जिनने हमको
लक्ष्मण-भरत से भाई दिये
और यहाँ सत्ता की खातिर
लड़ते देश लुटाते लोग

Saturday, April 5, 2008

रौशनी और अंधकार...

मैनें देखा है रौशनी को
हाथों में अंधकार लिये
अंधकार से लड़ते हुये
निरंतर चल रहे
इस संघर्ष में
रौशनी को थकते हुए
अंत में नहीं रही रौशनी
हमारे बीच
अंधकार आज भी
वैसा ही खड़ा है
~~~~~~~~~~~~~~~~~
मैनें देखा है रौशनी को
हाथों में रौशनी लिये
अंधकार से लड़ते हुये
निरंतर चल रहे
इस संघर्ष में
अंधकार को थकते हुए
अंत में रौशनी बढ़ी है
हमारे बीच
अंधकार आज भी
वैसा ही खड़ा है