अभिव्यक्ति से बढ़कर रखी थी
अव्यक्त से आशा
इंसानियत को मानकर
सही धर्म की परिभाषा
उसने पहले
जितना सहा जा सकता था
उतना सहा
फ़िर
जितना कहा जा सकता था
उतना कहा
पर धीरे-धीरे उसने जाना
गर अकेले चल पड़ा
तो भी मंजिलें मिल जायेंगी
पर अकेले व्यक्त इनको
क्या मैं भला कर पाऊँगा
यह सही यहाँ मैं नहीं
पर प्रतिबिम्ब हैं मेरे सभी
फ़िर क्यों उन्हें है सहना
बस मुझे तो संग इनके
दूर तक है बहना
बस मुझे तो संग इनके
दूर तक है बहना
No comments:
Post a Comment